Monday, September 06, 2010

कच्ची उम्र के पक्के खिलाड़ी

बेरसराय फ्लाइोवर के नीचे ताश मंडली। लेख और सभी फोटो : संदीप शर्मा
 पत्ते खेलने की योग्यता हासिल कर चुके हैं ये लोग। दाव पर लगाने के लिए दस का नोट बीच में पटक देते हैं। कचरा बेचकर या ढाबे पर बर्तन मांज कर कमायी करते हैं। उसे मिंटो में दोगुना करने की मुराद भी रखते।

वैसे ताश खेलना कोई बुरी बात नहीं है। माइंड गेम है। मैंने भी दोस्तों के साथ खूब ताश पीटे हैं। बिस्कुट से लेकर जानम तक दाव पर लगाया जाता था। यह अलग बात है कि कोई दाव आज तक फलित नहीं हुआ। ताश पीटना बिग टाइमपास था।

लेकिन इन बच्चों का मामला कुछ और है। दाव पर दिन भर की कमाई है। हारने का भय उतना ही है जितनी जीतने पर खुशी। उम्र से महज 10-12 साल के लगते है। बेरसराय के फ्लाइओवर के नीचे दिन के समय मंडली जमती है। अभी तक दिल्ली के फ्लाइओवर के नीचे अधेड़ उम्र के लागों को ही मंडली जमाते देखा था। कच्ची उम्र के खिलाड़ियों के साथ यह पहला वास्ता था। महसूस हुआ कि देश का भविष्य तो जुआ भी खेलता है।


फोटो खींचने की कोशिश में गेम बिगड़ गई।

1 comment:

Gajendra Singh Bhati said...

इन कच्चे खिलाड़ियों के नाम बताते तो भविष्य के उभरते चेहरे देख पाते। वो चेहरे जो देश की राजधानी के पॉश इलाके में रहते हैं। सिर पर सीमेंट के बने उस फ्लाइओवर की तस्वीर है, जो अब पक्के तौर पर दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने लगा है। पास में जिया सराय है, जहां लड़के-लड़कियां आएएस, आईईएस और भविष्य बनाने आते हैं। इससे सटकर लगा है भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली।
इन बच्चों ने अपनी तस्वीर नहीं लेने दी कि उन्हें फेसबुक से ज्यादा अपनी प्राइवेसी प्यारी है।
तुम्हारा लेख पढ़ते वक्त बंदिनी(1963) का गीत
'मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे...जनमभूमि के काम आया मैं..बड़े भाग है मेरे' सुन रहा हूं। इन दिनों तुम्हें ही ये गीत गाने वाला नायक मान रहा हूं।