Friday, September 10, 2010
Thursday, September 09, 2010
गुलमोहर पार्क की पत्रकार कौलोनी
गुलमोहर पार्क-पत्रकार कौलोनी का प्रवेश द्वार। लेख और सभी फोटो : संदीप शर्मा |
40 साल पहले की बात करें तो दृश्य कुछ और था। हॉज खास के पौश इलाके में बसाई गई पत्रकार कौलोनी बस अब नाम की रह गई है। समय की रील चल रही है दृश्य बदल रहा है और पत्रकार गायब हो रहे है। इसी इलाके में चालीस साल से दुकानदारी कर रहे विनोद सरीन बताते हैं कि बहुतेरे पत्रकारों ने इस इलाके में कोठियं बेच दी है। सरीन जिस दुकान के मालिक है वह दुकान उन्हें उनके पिताजी ने 45 हजार रुपये में खरीद कर दी थी। आज विनोद जब अपनी दुकान का भाव मोलते हैं तो 60 लाख से एक पैसा भी कम कुबूल नहीं। विनोद के पिता अंग्रेजों की एयर फोर्स में इंजीनियर की हैसियत पर थे। उनके द्वारा लगाई गई चक्की का आटा विनोद सरीन आज तक खा रहे है। चाहते तो अच्छे दामों में इस दुकान का सौदा भी कर सकते थे। जैसे इस इलाके में रहने वाली पत्रकार पीढ़ी ने किया।
Monday, September 06, 2010
कच्ची उम्र के पक्के खिलाड़ी
बेरसराय फ्लाइोवर के नीचे ताश मंडली। लेख और सभी फोटो : संदीप शर्मा |
वैसे ताश खेलना कोई बुरी बात नहीं है। माइंड गेम है। मैंने भी दोस्तों के साथ खूब ताश पीटे हैं। बिस्कुट से लेकर जानम तक दाव पर लगाया जाता था। यह अलग बात है कि कोई दाव आज तक फलित नहीं हुआ। ताश पीटना बिग टाइमपास था।
लेकिन इन बच्चों का मामला कुछ और है। दाव पर दिन भर की कमाई है। हारने का भय उतना ही है जितनी जीतने पर खुशी। उम्र से महज 10-12 साल के लगते है। बेरसराय के फ्लाइओवर के नीचे दिन के समय मंडली जमती है। अभी तक दिल्ली के फ्लाइओवर के नीचे अधेड़ उम्र के लागों को ही मंडली जमाते देखा था। कच्ची उम्र के खिलाड़ियों के साथ यह पहला वास्ता था। महसूस हुआ कि देश का भविष्य तो जुआ भी खेलता है।
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