भगवान जगन्नाथ की पवित्र रथ यात्रा। लेख और सभी फोटो : संदीप शर्माग्रीन पार्क का माहौल उड़िया हो चला था । जगन्नाथ रथ यात्रा का पर्व कहने को तो पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन उड़ीसावासियों के लिए यह कुछ विशेष होता है । ग्रीन पार्क की हरियाली के बीच बने जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे । लगभग नब्बे प्रतिशत लोग उड़ीसा के थे । जगन्नाथ पुरी जो नहीं जा पाते हैं वे यहीं भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर लेते है ।
एक मान्यता के अनुसार आज के दिन भगवान जगन्नाथ उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा सात दिनों के लिए अपनी मौसी के घर घूमने जाते है । भगवान जगन्नाथ की उनकी मौसी के घर यात्रा की याद में ही यह रथ यात्रा निकाली जाती है । जगन्नाथ पुरी की बात करें तो तीन अलग अलग रथ बनाए जाते है । और हजारों की संख्या में लोग उन रथों को रस्सी से खींचते हैं । लेकिन दिल्ली में भगवान जगन्नाथ , बालभद्र और सुभद्रा को एक ही रथ में रखा जाता है और इसे खींचने के लिए सैकड़ों लोग इकठ्ठा होते हैं ।
इस दिन ग्रीन पार्क नें मेला भी लगता है । भगवान के दर्शन और मेले की खरीदारी साथ साथ चलती है । सड़क के दोनों ओर खूब दुकानें सजती है । मेले के छोले-भटूरे, गोलगप्पे, और टिक्की का स्वाद तो अलग ही होता है । पूजा-पाठ के सामान से सजी दुकानों पर भी खूब भीड़ रहती है । ऐसे मौके पर टैटू बनवाने का भी लोगों में विशेष क्रेज रहता है ।
मंदिर के भीतर जाना है तो कतार में खड़े होना पड़ता है और अंकुरीत चने और मूंग का भोग चाहिए तो भीड़ में थोड़ा पसीना बहाना पड़ता है, भंडारा तो दिन भर चलता रहता है ।
रथयात्रा सुबह सात बजे शुरु हुई थी । मंदिर का पूरा चक्कर लगाकर रथ वापस मंदिर पर पहुंचता । सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे । माडिया के लिए एक अलग से चबूतरा बना था । माइक पर बजते जगन्नाथ स्वामी........ नयन नक्ष स्वामी......के सुरीले भजन और सड़क के बीचों बीच ढोलकी की धुन-ताल पर थिरकती भक्त मंडली ।
पीपी नायक मूलत उड़िसा के रहने वाले है । पेशे से किसी निजी कंपनी में प्रबंघक हैं और चार साल से दिल्ली में ही जॉब कर रहे हैं । कार्पोरेट जिंदगी की व्यस्त शैली ने उन्हें तीन साल इस पवित्र यात्रा में शामिल होने से रोके रखा । इस बार भाग्य से इस दिन उनका वीकली ऑफ था । पीपी नायक कहते हैं, "सब एडजेस्ट करना पड़ता है । भुवनेश्वर होता तो परिवार के साथ जगन्नाथ पुरि जाता । यहां तो बस अकेले ही आना जाना होता है।"
सड़क से मंदिर



















