आई आई टी दिल्ली, बॉलीबॉल कोर्ट और सुहानी रात में क्रिकेट का मजा। लेख और सभी फोटो: संदीप शर्मा
बॉलीबॉल कोर्ट में, फ्लडलाइट के नीचे, रात के करीब 11 बजे जब दिल्ली की बैचेन गर्मी को बारिश की बूंदों ने ठंडक पहुंचाई तो चल पड़े
एलपीएल यानी लल्लू प्रीमियर लीग का मजा लेने। ये मैं नहीं दिल्ली के आईआईटी कैंपस में पढ़ाई करने वाले और एलपीएल टीम में स्टूडेंट टीम के तेज गेंदबाज नीकू का कहना है। मैच के दौरान उनकी टीम का एक खिलाड़ी जब मिसफील्डिंग करता है, तो नीकू कहता है,
“अरे वैसे भी यह लल्लू प्रीमियर लीग है, गेंद पकड़ो या छोड़ो कोई फर्क नहीं पड़ता”।
आईआईटी कैंपस का यह बॉलीबॉल कोर्ट शिवालिक हॉस्टल के सामने ही है। शाम के खाने के बाद कैंपस की सड़कों में टोलियों में टहलना, फ्लडलाइट की चुंधियाती रोशनी के तले बास्केट बॉल, बॉलिबॉल, टैनिस और बैडमिंटन की गेमें जमाना कैंपस का हररोज का रात्रि मिजाज़ है। लेकिन रात के 11-12 बजे हाथ में बैट और बॉल थामकर मैदान में उतरना यहां कभी-कभी ही होता है। कोचिंग संस्थान में पढ़ाने वाले धीरज कहते हैं,
“यहां आना रोज नहीं होता। मौसम अच्छा हो गया था और बैट भी कई दिनों से हाथ में नहीं पकड़ा था, इसलिए पांच छह लोग जुटे और चले आए क्रिकेट खेलने"।बॉलीबॉल कोर्ट में खेले गए एलपीएल (लल्लू प्रीमियर लीग) के जैसे मैचों के अपने ही नियम होते हैं। अगर कोई भी बैट्समैन बॉलीबाल कोर्ट से बाहर बॉल उछालता है तो आउट करार दिया जाता है। पिच की लंबाई 15 गज के करीब है। बॉलर फुल स्पीड बॉल कर सकता है, और अगर बैट्समेन खुलकर शॉट खेलता है तो सिक्स जड़ने की जगह ऑउट हो सकता है।
दो टीमें थीं। हरेक टीम में तीन खिलाड़ी थे। बैटिंग साइड के खिलाड़ियों को बैटिंग के समय भी फील्डिंग करते रहना था अपने खिलाड़ी का कैच लपकना या छोड़ना, चौका रोकना या फिर मिस्फील्ड के एकशन के साथ जाने देना उसकी चालाकी पर निर्भर था। विकेट के पीछे खिलाड़ी चौकसी बरतता है या बैठकर कर बस उबासियां बटोरता है, कुछ भी करता है बस बॉल का रोटेशन नहीं बिगड़ने देना। वैसे भी ऐसे मैचों में कीपर की हैसियत सार्वजनिक संपत्ति की तरह होती है जिसका प्रयोग दोनों विरोधी टीमें कर सकती हैं।
ऐसे मैचों में अक्सर कोई अंपायर नहीं होता। जिस खिलाड़ी की आवाज मैदान में ज्यादा गूंजती है और सब पर भारी पड़ती है, बस उसका निर्णय ही अंतिम माना जाता है। मैच में वैसे तो कोई ब्रेक नहीं होता, बस बॉल जब कोर्ट से बाहर अंधेरे में घुस जाए तो बॉल न मिलने तक ब्रेक ही ब्रेक होता है। मैच के दौरान हौंसला अफजाई से ज्यादा खिंचाई होती है। मैच के दौरान अगर दर्शक दीर्घा से कोई व्यक्ति मैदान में आकर खेलने की इच्छा व्यक्त करे तो टीम में उसे भी शामिल कर लिया जाता है।
आईआईटी कैंपस के बॉलीबॉल कोर्ट में खेले गए इस मैच में एक तरफ तीन लखनवी नवाब धीरज, सुरेंद्र, कंदू थे। और दूसरी तरफ कैंपस के तीन स्टूडेंट। लखनवी नवाबों ने तीन में से दो मैच जीत लिए थे, तीसरा मैच तो महज एक औपचारिकता था। मैच के दौरान न कोई स्कोरर न काई कंमेंटेटर, न ही दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट और न ही संगीत की धुन पर थिरकती डांस बालाएं। मैदान से इतना कुछ गायब होने के बावजूद भी जो चीज थी वह थी आनंद की अपार अनुभूति।
खेलने के लिये मेट न सही नेट तो हैएक्शन रीप्लेलखनवी नवाब गेंद का सामना करने के लिये बिलकुल तैयार गेंद नेट से बहार अँधेरे में उछल चुकी है सो वापसी का इंतज़ार दूधियाती रौशनी में फील्डिंग की कसावट गेंद की वापसी पर गेम फिर शुरू जीता वही जिसने मेच में सबसे ज्यादा मजा लिया