डीडीए की निगरानी और सामान समेटते हॉकर। लेख और सभी फोटो : संदीप शर्मा
एक और छापा पड़ते देख रहा था। डीडीए के अधिकारी और पुलिसवाले घूम रहे थे और वहां दुकान लगाकर बैठे लोगों के दिल तेज-तेज धड़क रहे थे। बहुतों की दुकान तय आकार से बाहर जा रही थी। आज इन्हें बिखेरा जाना तय था। किसी की रोजी उजड़ते देखने के पैशे में न जाने क्या रखा है। आखों से आंसुओं को बहते, हाथों को रहम के लिए जुड़ते और गिड़गिड़ाते दुकानदारों को देखना विचलित कर देने वाला रहा। एक बार फिर। नेहरू प्लेस के इतिहास पर बात फिर कभी होगी। अभी बात इस घटना की। कपड़ों की दुकानें, जूतों की दुकानें, सीडी की दुकानें, हार्डवेयर की दुकानें, उपकरण रिपेयर करने की दुकानें और छोटे-भटूरे की दुकान भी प्रभावित हुईं।
नेहरू प्लेस में हॉकरों को दुकान लगाने के लिए या तो कोर्ट के स्टे ऑर्डर होना जरूरी है या फिर मानुषी संगठन द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र। डीडीए ने नेहरु प्लेस मार्केट की शोभा बढ़ाने के लिए इन हॉकरों को हटाने का निर्णय लिया था। लेकिन साथ ही वादा भी किया था कि हॉकरों को वैकल्पिक जगह मुहैया करा दी जाएगी। आज से दो साल पहले अप्रैल 2008 में हॉकरों को हटा दिया। ना कोई नोटिस दिया ना हा कोई वैकल्पिक जगह। अस्सी के दशक से यहां दुकानदारी कर रहे हॉकरों के लिए यह बड़ा धक्का था। ऐसी स्थिति में गैरसरकारी संगठन मानुषी आगे आया। सभी हॉकरों ने मानुषी के बैनर तले अदालत का रुख किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले का संज्ञान लिया और डीडीए के नोटिस पर स्टे ऑर्डर दे दिया। साथ ही अदालत नें मार्किट की व्यस्तता को देखते हुए दुकान का दायरा भी निश्चित कर दिया। 4 बाई 6 में दुकानें फैलाने का सख्त आदेश दिया।
लेकिन, सभी हॉकरों का मानना है कि दुकान का यह साइज बहुत कम है। इस दायरे में दुकान लगाना और काम करना मुश्किल है। यही कारण है कि सभी हॉकर अदालत के इस आदेश को परे रख कर दुकान का आकार 14 से 16 फुट तक बढ़ा देते है। कारणवश मार्किट कईं बार घिच-पिच हो जाती है। कुछ हॉकर ऐसे हैं जिनके पास न तो अदालत के स्टे ऑर्डर है और न ही मानुषी संगठन का पहचान पत्र। इनकी संख्या तीन सौ से भी अधिक है।
जब दुकानों का आकार बढ़ जाता है और हॉकरों की संख्या बढ़ जाती है तो डीडीए को दखल
देनी पड़ती है। पुलिस और डीडीए कर्मचारी जत्थे में निकलते हैं और मार्किट का मुआयना करते हैं। जिसकी दुकान 4बाई6 से ज्यादा में फैली होता है उसके फट्टे जब्त कर लिए जाते है। अनधिकृत दुकानों को हटाया जाता है। छापे के समय सॉफ्टवेयर बेचने वाले लड़के और कार्टरेज रीफिल करने वाले दुकानदार कुछ देर के लिए छिप जाते है।
बस कहना यही है कि एशिया की सबसे बड़ी इस आईटी मार्किट का प्रबंध कैसे हो? मार्किट की शोभा भी एक मुद्दा है और यहां रोजी कमाने वाले हॉकर भी। हॉकरों को यहां से पूर्णरूप से हटा कर उन्हें जंगल का रास्ता दिखाना उचित नहीं। समाधान कुछ ऐसा हो ताकि रोजी भी बचे और मार्किट व्यवस्थित भी हो।
डीडीए द्वारा तैयार नक्शे पर नजर डालते डीडीए अधिकारी और हॉकर
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