Saturday, August 14, 2010

आज़ाद भारत की रेड-लाइट

आईआईटी दिल्ली फ्लाइ-ओवर रेड-लाइट सिगनल के इंतजार में।
आईआईटी दिल्ली फ्लाइ-ओवर रेड-लाइट सिगनल के इंतजार में। लेख और सभी फोटो: संदीप शर्मा

डीटीसी 507 में आईआईटी दिल्ली की रेड-लाइट पर ब्रेक लगता है। छपरा का भीम सिंह डीटीसी के ड्राइवर को तिरंगा बेचने के लिए आगे बढ़ता है । दो रुपये में एक तिरंगा । उसी बस की पिछली सीट पर मैं सवार था । इंडियागेट जाना था । सोचा कि भींम सिंह को पूछता चलूं कि उसके लिए आजादी का क्या मतलब है और उसका 15 अगस्त के लिए क्या प्लान है ?

पूछताछ करने में एक अजनबी सी हिचकिचाहट । कहीं बिगड़ न जाए । खैर बात हुई तो भीम सिंह बोला,"मेरे लिए आजादी का मतलब झंडे बेचना है और 15 अगस्त को भी यही करूंगा ।"

भीम सिंह सात साल का था जब उसने पहली बार दिल्ली की रेड-लाइट पर किसी को तिरंगा बेचा था । आज भीम सिंह 17 साल का हो गया है । एक झंडे की कीमत पचास पैसे से दो रुपये पहुंच गई लेकिन भीम सिंह की कीमत अब भी वही है । माता - पिता छपरा में खेती करते हैं । एक छोटा भाई है जो दसवीं में पढता है । भीम सिंह अपनी कमाई में से लगभग हजार-पंद्रह सौ घर भेजता है । कहता है कि भाई को पढ़ाऊंगा । इतने में रेड सिंगनल हो गया । एक के पीछे एक गाड़ी रुकना शुरू हुई। भीम सिंह के पास अब मुझसे बतियाने का समय नहीं था । उसने तिरंगों का गुच्छा लेकर एक के बाद एक गाड़ी की खिड़की से चिपकना शुरु किया । छोटा भाई पढ़-लिख कर कुछ बन गया तो भीम सिंह आजादी के लड्डू उसी दिन बाटेंगा ।


रेड लाइट के उस पार चित्तौड़ जमा था । चित्तौड़ की गीता उस समय फ्लाइओवर के नीचे पलने में अपने बच्चे को झुला रही थी । तीन-चार बच्चों की चें-चें से तिलमिलाई मां से पूछने की तरकीब सोच रहा था । तरकीब बेतरतीब हो गई । बोली कि क्यों भई ? कौन हो तुम ?..अच्छा आजादी...कौन आजाद है ? हम तो अभी भी गुलाम हैं । हमें तो दिल्ली से भी निकाला जा रहा है । कहां जाएंगे हम....

पास खड़ी गीता की भतीजी थोड़ा करीब आकर पूछती है,"भइया हमें दिल्ली से क्यों निकाला जा रहा है ?" आप ही बताओे मैं क्या जवाब देता । उत्तर होते हुए भी निरुत्तर सा पाया । दिलासा दिया कि हो सकाता है कि तुम्हें तीन-चार महीनों बाद तुम्हारी रेड लाइट नसीब हो जाए । नाम सुनीता है उम्र यही कोई 17-18 साल । साथ में एक छोटी बहन और दो छोटे भाई । सबों के हाथ में तिरंगों के गुच्छे हैं ।

चित्तोड़ का हरिराम उसी फ्लाइओवर के नीचे गुलदस्ते बनाने का काम करता है । चार बच्चे हैं और सभी के हाथ में तिरंगों के गुच्छे हैं। इन तिरंगों का आज क्या करना हैं ये सब जानते हैं । झंडे बेचो और पैसा पिताजी के पास जमा कराओ ।

मैं हरिराम से बात करने की कोशिश कर रहा था लेकिन वह थोड़ा व्यस्त था । कच्छे को पानी से गीला करके वह अपने बच्चों को नहला रहा था । दिल्ली की सड़कों पर नहाने का यह एक नया तरीका है ।आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा । लेकिन सच्चाई तो अजीब भी हो सकती है न । कच्छा शायद इसलिए कि उसके पास उससे साफ कोई और कपड़ा न था । गीला किया और बच्चे को पैर से सिर तक रगड़ता गया । नहाने का तरीका तो समझ आ रहा था लेकिन कारण नहीं । मट्टी में खेलने वाले बच्चों को नहलाने का क्या मतलब ।
पूछा तो हरिराम ने बताया, "अभी मेडम आएगी और बच्चों को स्कूल ले जाएगी" कौन मेडम और कैसा स्कूल इसकी बात अलग से करूंगा ?

फिलहाल बच्चों के स्कूल जाने से हरिराम को आजादी की एक उम्मीद जगी है । लेकिन अगर अभी यह कहा जाए कि वह आजाद है थोड़ा अटपटा लगेगा ।

चित्तौड़ की गीता का बड़ा बेटा
गीता का भतीजा
हम हैं देश का भविष्य
गीता पूरे परिवार के साथ
भीम सिंह डीटीसी ड्राइवर को तिरंगे बेचने की कोशिश में
रेड-लाइट ऑन, ट्रेफिक स्थिर यही है सही मौका
शीशों से भीतर झांको शायद कोई तो खरीद ले एसी में बैठे लोग इनके बारे में क्या सोचते होंगे
कैमरे से नहीं दिल्ली सरकार से है परहेज
हरिराम अपने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते हूए
पढे़ ना पढ़े बड़े जरूर हो जाएंगे

1 comment:

Parveen Kr Dogra said...

'excellent' (for the effort), 'kudos' (for the care u have).