तुम जो ये कलम टांग कर घूमते हो न, कवि होने का ढोंग करते हो
और ये तुम्हारा कुर्ता, नीचे जींस, पांव पर चप्पल और बेतरतीब दाढ़ी
ढोंगी हो तुम
ढोंग पर कभी कविता लिखी है
मगर जो है उस पर क्या लिखना
तुम धनवान कल्पनाओं में जीते हो, लिखते हो
ये भी ढोंग ही है, तुम्हें अपने आसपास कुछ नज़र नहीं आता।
और ये तुम्हारा कुर्ता, नीचे जींस, पांव पर चप्पल और बेतरतीब दाढ़ी
ढोंगी हो तुम
ढोंग पर कभी कविता लिखी है
मगर जो है उस पर क्या लिखना
तुम धनवान कल्पनाओं में जीते हो, लिखते हो
ये भी ढोंग ही है, तुम्हें अपने आसपास कुछ नज़र नहीं आता।
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