पालिका बाजार के बाहर कपड़े की मार्किट का जायजा लेता एमसीडी कर्मचारी। लेख और सभी फोटो :संदीप शर्मा
सिर के पीछे दोनों हाथ रख कर एमसीडी अधिकारियों की ओर देखते हुए दीपक कुमार कहता है,"एमसीडी वाले थे। यह साहब शेर की तरह आते हैं। जब आते हैं तो मार्किट में हड़कंप मच जाती है।" दीपक कुमार बिहार से है। वह पालिका बाजार के बाहर लगी कपड़ों की मार्किट में काम करता है। एमसीडी अधिकारी उसका कुछ सामान चालान के तौर पर बोरे में डाल कर ले गए। मालिक चालान भरेगा तो ही सामान वापिस मिलेगा।
एमसी़डी कर्मचारियों ने पालिका बाजार के बाहर कपड़ों की मार्किट में छापा मारा। अतिक्रमण और अनधिकृत दुकानों की जांच हुई। अनधिकृत दुकानों को तुरंत हटा दिया गया और जिन दुकानों में मालिक मौजूद नहीं थे उनका चालान काटा गया। ग्राहक हैरान परेशान खड़े थे। लेन-देन कुछ समय के लिए बंद हो गया। फिर भी दुकानदारों के बीच नो टेंशन का माहौल था। ऐसा इसलिए क्योंकि 300-400 रुपये का चालान भरने के बाद सामान वापस मिल जाएगा, फिर दो-तीन महीनों तक कोई छापा नहीं।
यह मार्किट सुबह से शाम तक ग्राहकों से ठस रहती है। सौ रुपये में टीशर्ट और डेढ़ सौ में जीन्स खरीदी जा सकती है। चीज फिट न बैठे तो वापिस की जा सकती है। लेकिन चीज कितनी टिकाऊ होगी इस बात की कोई गारेंटी नहीं। गारेंटी के बारे में किसी भी दुकानदार से पूछो तो एक ही जवाब मिलता है,"गारंटी तो आदमी की भी नहीं होती यह तो फिर भी कपड़ा है। और सौ-डेढ़ सौ की चीज में कौन गारंटी देता है।" अगर कोई ग्राहक फिर भी संतुष्ट न हो तो कहते हैं, "गारंटी की ज्याद ही पड़ी है तो शोरुम में क्यों नहीं जाते"। कपड़ों की इस मार्किट की एक ओर पालिका बाजार है और दूसरी ओर कनॉट प्लेस के शोरूम। पालिका बाजार और शोरूम से बाहर आने के बाद भी लोग यहां हाथ आजमाना नहीं भूलते।
राष्ट्रमंडल खेल नजदीक है इसलिए एमसीडी अधिकारी हॉकरों मार्किट में बार बार छापे मारे रहे हैं। ऐसे में लाईसेंस धारक तो नश्चिंत हैं लेकिन बिना लाईसेंस के दुकान चलाने वालों को रोज नए जुगाड़ भिड़ाने पड़ाते हैं । उन्हें एमसीडी कर्मचारियों के साथ सांठ-गांठ करनी पड़ती है। लेकिन अगर किसी की एमसीडी कर्मचारियों के साथ अच्छी कैमेस्ट्री तो जुगाड़ का भी जरुरत नहीं पड़ती। कर्मचारियों और हॉकरों के बीच की मार्किट केमिस्ट्री एक नया कंसेप्ट है।
जल्दी-जल्दी इकठ्ठा करने का आदेश
3 comments:
photos kafi ache hai.......saaf aur according to matter.........waise in lgo ki majboori hai inhe apna maal bechne k liye jagah chahiye...jo delhi govt deti nahi......to kya karen ye bechare...
is problm ka Lucknow me acha solution hai.....yaha nakhas naam se ek bazar hai jo sunday ko band rehta hai inke liye........jo road side bechte hai.......ise yaha chor bazar bhi kehte hai....yyaha sab police ki dekh rekh me hota hai....
janta bhi khush....trafficjam bhi nahi.....aur ye roadside Romeo bhi khush.
sukh sagar singh bhati
discussiondarbar.blogspot.com
संदीप जी आपके द्वारा बहुत सुन्दर चित्र लिए गए है |दिल्ली के बारे में और ज्यादा लिखे क्यों की आपका लिखा पूरा संसार पढता है | अभार
Wah ab jaunga.
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