Friday, May 28, 2010

हरी घास की मखमली चादर, उस पर जमे स्टील के ख़ंबे और इनके बीच गुजरते इत्मीनान के लम्हें

महेश्वर सिंह अपने दोस्तों के साथ । लेख व सभी फोटो :- संदीप शर्मा

सफदरजंग हस्पताल की खिड़कियों से जब मेरी नजर बाहर पड़ती तो फ्लाइओवर से घिरे स्टील के इन खंबों पर अटक जाती। दिल तो रोज यहां आने का करता लेकिन बीवी की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब है। यहां आने की इच्छा तो बस धरी की धरी रह जाती। आज बीवी के साथ घर के कुछ लोग हैं इसलिए समय निकाल कर स्टील के इन खंबों को देखने चला आया । ये कहते हुए महेश्वर सिंह सुकून भरी गहरी सांस लेते हैं। महेश्वर सिंह उत्तराखंड के हल्दवानी के रहने वाले हैं।

महेश्वर अपनी बीवी के इलाज के सिलसिले में पिछले एक सप्ताह से सफदरजंग हस्पताल में है। वह कहते हैं , हस्पताल और अदालत के आस पास तबीयत खुश कर देने वाली चीजें हो तो आदमी का दुख आधा हो जाता है वरना इन झमेलों में फंसा आदमी खुद आधा रह जाता है

सफदरजंग और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के बगल में स्थित यह पार्क राहगीरों, घुमंतुओं और कामगारों के लिए आराम करने की एक मुफीद जगह है। यह पार्क जिंदल स्टील द्वारा विकसित और प्रबंधित किया गया है। एम्स और सफदरजंग में अपने संबंधियों की देखभाल में जुटे लोगों के लिए तो मानो यह आधा स्वर्ग है। एम्स में अपने भाई का इलाज कराने आए प्रेम सिंह के पास यहां आने का अपना एक अलग बहाना है। वह कहते हैं, जब डॉक्टर लोग फेरी पर होते है तो मैं आध-पौन घंटे के लिए यहां चला आता हूं। हस्पताल के बाहर बैठे रहने से तो दिल और ज्यादा परेशान हो जाता है

फ्लाइओवर से घिरे स्टील के पेड़नुमा खंबों वाले इस पार्क के चारों तरफ गाड़ियां गोल-गोल चक्कर लगाती हैं। ऐसे में लोगों की नजरें स्टील के इन खंबों पर सहज ही टिक जाती है। दिल को खुश कर देने वाला यह नज़ारा लोगों की नजरों को तब तक बांधे रखता है जब तक कि पार्क आंखों से ओझल नहीं हो जाता। पार्क के बीचों-बीच जाती सड़क इसे दो भागों में बांटती है। सफदरजंग की तरफ वाले हिस्से में बहुत सारे छोटे और थोड़े बड़े पेड़नुमा स्टील के खंबे हैं और एम्स की तरफ वाले हिस्से में पांच-छह विशालकाय खंबे हैं। पार्क की हरी-भरी घास और नन्हीं झाड़ियों के झुरमुट खंबों की खूबसूरती को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। इस पार्क में माली का काम करने वाला सुरेश कहते हैं, शाम के समय जब पार्क में लाइटें जलती हैं तो नजारा और भी मजेदार हो जाता है। अक्सर शाम को ही यहां पर भीड़ रहती है

इन दिनों एम्स के पास मैट्रो निर्माण का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। इसमें काम करने वाले मजदूरों के लिए भी यह पार्क थोड़ी देर कमर सीधी करने का अच्छी जगह है। ऐसे ही एक मजदूर हरदयाल हैं । वह भी अन्य मजदूर साथियों के साथ टी-ब्रेक होने पर थोड़ा आराम करने यहां आ जाते हैं। अपनी पीली सुरक्षा टोपी के सहारे सिरहाना लगाते हुए हरदयाल कहता है, अभी टी-ब्रेक हुआ है। साब लोग तो साइट पर ही चाय-बिस्कुट लेते है और हम लोग थोड़ा आराम करने यहां आ जाते है। कुछ मजदूर परिवारों के लिए तो पार्क के साथ लगते फ्लाइओवर आशियाने बन गए हैं। इन परिवारों के बच्चों के दिन की शुरुआत स्टील के इन खंबों के साथ खेलने-कूदने से होती है और उनका दिन भी पार्क की चुंधियाती रोशनी के साथ ही ढलता है।

शाम का वक्त, अपने परिवार के साथ लोग, हरियाली और फन्वारे


आसमान के जैसे ... ऊँचे

परिवार आते हैं यहाँ, जहाँ ये भी एक परिवार है

एम्स और सफदजंग के बीच से गुजरता पुल, जिंदल स्टील का बनाया पार्क

पानी की फुहारों से मिटती हरी घास की प्यास

बस यही सुकूं है और यही स्वर्ग, ओह! प्रिय नींद
सामने काम की जगह और ये ..आराम की..

पानी की बौछार थोड़ी शहर पर भी हो मौला