Wednesday, August 11, 2010

हिंदुस्तान की तकसीम और बाद का तमस

जेएनयू - भोपाल के तमस के सामने भीष्म साहनी का 'तमस ' । 
"......one of the Hindu girl climbed the roof of her house when we happned to stop her. About twelve of us climbed up to the roof. She was about to jump over the railing to the next roof when we cought her. Nabi,Lalu,Meer,Murtza-they all had her turn by turn.
.........I swear by Allah. when my turn came, she said neither 'no' nor 'yes' as she lay under me. she didn't ever stir. Then i found that she was dead. I had been doing this with my corpse.
When we confronted this girl she started screaming. 'Haramjadi'. she was begging us not to kill her.
"All the seven of you can have me", she pleaded. "Do with me what you like but dont kill me".
so?
"so what?' Aziz plunged his knife into her breast. she fell down dead.".....



उपन्यास के 196 वें पन्ने पर पहुंचा तो असहज हो उठा। थोड़ी देर के लिए किताब को बंद किया और आंखों को भी। बेचैनी बढ़ी तो पीनी की बोतल की ओर लपका और दो घूंट पीकर फिर से पढ़ने की कोशिश की।

उपन्यास में ऐसी कई पंक्तियां आती हैं जो आपको असहज कर देगी। कुछ देर के लिए आप ठहर से जाएंगे। भीष्म साहनी ने तमस में विभाजन के विभिन्न पहलुओं को भावनात्मक अभिेव्यक्ति दी है। अंग्रेजों ने 1947 में हिन्दुस्तान के विभाजन की दरार डाली। हिंदू, मुस्लिम और सिख धर्म के कईं मासूम इसमें समां गए। विभाजन की घोषणा के बाद गर्त के कुछ दिन कैसे गुजरे इसी विषय पर यह उपन्यास आधारित है।

मस्जिद की चौखट पर एक काले रंग का सूअर मार कर फेंक दिया गया था। शहर की अधिकतर आबादी मुसलमानों का थी। शहर के चाय-ढाबे और चौराहे सूअर की घटना की गपबाजी से सनते जा रहे थे। संदेह की सुई चुभनी शुरु हो गई थी। महमूद का उपन्यास के 31वें पन्ने पर बख्शी जी को यह कहना, "मुसलमानों का प्रतिनिधित्व केवल मुस्लिम लीग सकती है कांग्रेस नहीं। मुस्लमान पाकिस्तान में ही स्वतंत्र महसूस कर सकते है।" ऐसी बातचीत थी जिसनें सूअर वाली घटना के बाद जोर पकड़ना शुरू किया था।

स्थिति तब और ज्यादा बिगड़ गई जब कलेक्टर साहब ने कर्फ्यू लगानें से इंकार कर दिया। कांग्रेस और लीग के नेताओं ने रिचर्ड के साथ बैठक की। कर्फ्यू लगाने की मांग का। लेकिन रिचर्ड की नजरों में स्थिति अभी ज्यादा खराब नहीं हुई थी। रिचर्ड के साथ बैठक जारी थी कि शहर में किसी हिंदू के मारे जाने की खबर पहुंची। सभी नेता बैठक बीच में ही छोड़ कर शहर की ओर निकल दिए। शहर पहुंचते पहुंचते स्थिती बेकाबू हो चुकी थी। दोनों ओर हथियारों को इकठ्ठा करने का होड़ मच गई थी । शाम ढलते ढलते एक तरफ अल्हा हू अकबर और हर हर महादेव के नारे और दूसरी ओर लोगों की चीख-चिल्लाहट। पौ फटते फटते कईं जिंदगियां अंधकार में डूब जाती और मोहल्ले के मोहल्ले खाक हो जाते।

नाथू ने भी मुराद अली के कहने पर एक काले रंग का सूअर मारा था। लेकिन उसे तो वेटनरी के डॉक्टर को देने की बात हुई थी। प्रतिशोध में गायों के काटे जाने का खबरें भी उड़ने लगी थी। हिंदुओं ने मुस्लिम बहुल इलाकों से निकलना शुरू कर दिया था। सुरक्षित स्थान पर पहुंचना तो समृध्दों के वश की बात थी । गरीब तो हर गली-मुहल्ले में कट रहा था। 27 सिख महिलाओं ने इज्जत की सलामी के लिए कुएं में डूबकर जान दे दी। खबरें बलात्कार की भी पहुंच रही थी। इकबाल का नाम अब शेख इकबाल मौहम्मद हो गया था। इकबाल सिंह सिख की संतान था।

लाशों की सड़ांध जब ब्रिटिश सरकार को सताने लगी तो सेना को कमान थमा दी गई। शरणार्थी शिविर में डेरा क्लर्क को आदेश था कि जान-माल का डेटा तैयार करते वक्त यह भी पूछी जाए कि मरने वाला गरीब थी या अमीर। कांग्रेस इसकी अलग लिस्ट चाहती है। कांग्रेस, मुस्लिम लीग और गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी ने अब शांति समिति का गठन कर लिया था। शरणार्थी शिविर में कुछ नेता अनुमान लगा रहे थे कि गरीब ही ज्यादा मारे गए हैं। कांग्रेस नेता बख्शी जी का यह कहना बिल्कुल सही था कि अगर अंग्रेज सरकार ने पहले ही कर्फ्यू लगा दिया होता तो इतनी जानें न जाती।

लेकिन ब्रिटिश सरकार की मंशा समस्या का समाधान नहीं था......

Liza... 'I hope you are not in any sort of danger. Rechard.' 'No Liza'. "When the people fight among themselves the ruler is safe".
Liza said... 'It is not nice that they should fight among themselves'. Richard lauhged....
"Will it be nice if they joined hands and fought against me? Pilled my blood, buchered me. ......How would you like if those people were creating this racket out side my bunglow and aiming their spears at my bed"?
Liza.....'Don't human value mean anything any more'.


हिंदुस्तान का विभाजन एक तमस ही था। अभी तक ना मुक्ति भारत को मिली है और ना ही पाकिस्तान को। कश्मीर आज भी जारी है। गरीब आज भी सड़कों पर बेहाल है। सुनने वाला कोई नहीं है। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में जो इच्छा शक्ति सरकार ने दिखाई है वह गरीबी उन्मूलन में क्यों नहीं? क्या गरीबी से देश की इमेज खराब नहीं हो रही है? अगर देश की राजधानी में भी तमस फैला है तो बकी की तो बात ही छोड़िए।

हौजखास की दीवारें क्या कहती हैं ?

राष्ट्रमंडल खेलों का अंधियारा
जेएनयू की दीवारें जो कुछ कहती हैं

दीवारें कहती हैं कि हमें अंधकार में मत रखिए हम सब जानती हैं
साकेत-छोटे दुकानदारों और किसानों का दर्द छिपा है मॉल की दीवारों पर
तमस-1
तमस-2
तमस-3

2 comments:

sukh sagar singh bhati said...

maine TAMAS ki summary padhi thi but apke post k baad ab mujhe poori padhni hi padegi..........

Bahut umda aur badhiya......
Kisi research se kum nahi.....

Best wishes...

PUKHRAJ JANGID पुखराज जाँगिड said...

बहुत ही बढिया पोस्ट.
चित्रकथाएँ तो इसे जीवंत बना देती है. विभाजन की त्रासदी और उसका अहसास हमारे इतिहास का एक ऐसा पन्ना जिसे हम शायद ही दुबारा होता देखना चाहें. लेकिन आज भी कुछ ऐसी असामाजिक ताकतें है जो इसे दुबारा लाने पर आमादा है. सावधान मेरे साथी.
लगे रहें.
पुखराज जाँगिड़